मऊ। जिले अबैध हॉस्पिटलो के संचालन का खेल पुराना है, यह अलग की बात है कि अचानक इधर हुई चार मौतो के बाद प्रशासन से लेकर शासन तक कों, खुद कों भ्रष्टाचार के खिलाफ साबित करने के लिए हरकत मे आना पड़ा। जिले मे हॉस्पिटलो के पंजीकरण से ही लिफाफे का खेल शुरू हो जाता है। जिन हॉस्पिटलो के नक्शे पास नहीं है, वे भी जिले मे वर्षो से संचालित हो रहे है। वर्ष 2015-16, 2016-17 के विभागीय दस्तावेजों मे दर्ज 33 निजी हॉस्पिटलो मे से दर्जन भर ऐसे हॉस्पिटल वर्षो से संचालित हो रहे जिनके भवन के नक्शे तक पास नहीं है और जिनके पास है व रिहायसी है या फिर तथ्यगोपन और कूटरचना के परिणाम मे स्वीकृत है।
विभागीय सूत्रों की माने की राहुल हॉस्पिटल 100 सैया का हॉस्पिटल है, वर्ष 2015 मे राहुल हॉस्पिटल द्वारा अग्नि समन अधिकारी के द्वारा ली गईं अनापत्ती प्रमाण पत्र फर्जी होने के बावजूद नियत प्राधिकारी के द्वारा उसके भवन के नक्शे कों स्वीकृति दी गईं। सरकारी अभिलेख मे मुख्य अग्नि सामन अधिकारी के बिना अनापत्ति प्रमाण पत्र के ही तत्कालीन नगर मजिस्ट्रेट / नियत प्राधिकारी अमरनाथ राय के द्वारा नक्शा पास कर दिया गया। अनापत्ती प्रमाण पत्र जो सरकारी अभिलेख मे दिनांक नवम्बर 2017 का सलग्न है, वह भी फर्जी और बिना इसका अवलोकन किये, हॉस्पिटल के भवन का नक्शा लिफाफे के जोर पर पास कर दिया गया है।
बहरहाल राहुल हॉस्पिटल बड़े अबैध हॉस्पिटलो मे अकेला नहीं है, इसके साथ कई बड़े हॉस्पिटल है जिनका प्रबंधन पंजीकरण के दौरान तथ्यों को छुपाया है और कूट रचित दस्तावेजो के सहारे विभागीय अधिकारियो कों पटा कर पंजीकृत हो गया है।
मजेदार बात तो यह भी है कि जो हॉस्पिटल बेसमेंट मे संचालित होते है उनको भी विभाग ने रजिस्टर कर दिया है। राहुल हॉस्पिटल बड़े अबैध हॉस्पिटलो की मौजूदगी कों साबित करने के लिए बतौर उदाहरण प्रस्तुत किया जा रहा है।
शासन और प्रशासन कों जिले बैध हॉस्पिटलो की जाँच के दौरान पंजीकृत हॉस्पिटलो के पंजीकरण दौरान सलग्न दस्तावेजो की भी न्याय और समाजहित मे जाँच करनी चाहिए।
