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बचाव पक्ष का तर्क- हसीना ने बांग्लादेश में बीडीआर विद्रोह को कुशलतापूर्वक संभाला

ढाका, 17 सितंबर। बांग्लादेश में जुलाई विद्रोह से संबंधित मानवता के विरुद्ध अपराध के मामले में अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण-1 में जिरह के दौरान बचाव पक्ष के वकील अमीर हुसैन ने तर्क दिया कि अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना ने बीडीआर विद्रोह को कुशलतापूर्वक संभाला और इसमें शामिल लोगों के खिलाफ मुकदमा सुनिश्चित किया। शेख हसीना और […]

ढाका, 17 सितंबर। बांग्लादेश में जुलाई विद्रोह से संबंधित मानवता के विरुद्ध अपराध के मामले में अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण-1 में जिरह के दौरान बचाव पक्ष के वकील अमीर हुसैन ने तर्क दिया कि अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना ने बीडीआर विद्रोह को कुशलतापूर्वक संभाला और इसमें शामिल लोगों के खिलाफ मुकदमा सुनिश्चित किया। शेख हसीना और पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान कमाल का प्रतिनिधित्व कर रहे सरकारी बचाव पक्ष के वकील ने आरोप लगाया कि अमर देश के संपादक महमूदुर रहमान ने पूर्व प्रधानमंत्री और शेख फजले नूर तपोश को 2009 के बांग्लादेश राइफल्स (बीडीआर) विद्रोह और नरसंहार में व्यक्तिगत प्रतिशोध के कारण फंसाया था।

द डेली स्टार के अनुसार सरकारी वकील हुसैन ने महमूदुर के इस दावे को खारिज कर दिया कि हसीना ने सेना के प्रति नाराजगी जताई और उसे कमजोर किया। उन्होंने कहा कि हसीना ने सेना को मजबूत किया। इस दौरान महमूदुर ने जवाब दिया, “यह सच नहीं है।” इससे पहले महमूदुर ने सोमवार को इस न्यायाधिकरण में अभियोजन पक्ष के 46वें गवाह के रूप में अपने बयान दर्ज कराए। पूर्व पुलिस महानिरीक्षक चौधरी अब्दुल्ला अल-मामून भी इस मामले में आरोपित हैं। वह अब सरकारी गवाह बन गए हैं।

गवाह महमूदुर ने बयानों में आरोप लगाया कि पदभार ग्रहण करने के बाद हसीना का पहला कदम सेना को कमजोर करना था। बीडीआर नरसंहार उनके कार्यकाल के दो महीने के भीतर ही रचा गया। इसमें शेख परिवार के सदस्यों विशेष रूप से पूर्व सांसद तपोश की संलिप्तता थी। बचाव पक्ष के वकील ने यह भी कहा कि महमूदुर का हसीना की तुलना हिटलर से करना उचित नहीं। गवाही पूरी होने के बाद महमूदुर ने अदालत कक्ष के बाहर कहा, “शेख हसीना भी हिटलर का एक छोटा संस्करण थीं। उनके पास हिटलर जितनी शक्ति नहीं थी, फिर भी मानसिकता में वे उससे आगे थीं। यहां तक कि हिटलर ने भी हत्याओं के बाद शवों को गायब करने का आदेश नहीं दिया था।” उन्होंने दोहराया कि हसीना ने खुद प्रदर्शनकारियों को मारने और उनके शवों को गायब करने का आदेश दिया था।

जुलाई विद्रोह के दौरान अत्याचारों पर संयुक्त राष्ट्र की एक तथ्य-खोजी रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने दावा किया कि रिपोर्ट ने तत्कालीन प्रधानमंत्री हसीना, पूर्व गृहमंत्री कमाल और अवामी लीग के महासचिव ओबैदुल कादर के सीधे आदेशों के तहत सामूहिक हत्याओं और मानवता के खिलाफ अपराधों की पुष्टि की है। उन्होंने कहा कि देश का वरिष्ठ नागरिक होने के नाते न्याय स्थापित करने में न्यायाधिकरण को पूर्ण सहयोग प्रदान करना उनका कर्तव्य है और इसी सहयोग के तहत वह गवाही दे रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश राइफल्स (अर्धसैनिक बल) के सैनिकों ने फरवरी, 2009 में ढाका में विद्रोह किया था। इसे बीडीआर विद्रोह, बीडीआर नरसंहार, पिलखाना नरसंहार या पिलखाना त्रासदी के नाम से जाना जाता है। विद्रोही सैनिकों ने अपने कमांडिंग अधिकारियों के खिलाफ हथियार उठाए थे। इसे बांग्लादेश के इतिहास के सबसे खूनी सैन्य तख्तापलट में गिना जाता है। इसमें 57 सैन्य अधिकारी और अन्य लोग मारे गए थे। विद्रोह के बाद सरकार ने इस बल का नाम बदलकर बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश (बीजीबी) कर दिया था।

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