उत्तर प्रदेश के मऊ ज़िले का सूरजपुर गांव सिर्फ़ अपनी भौगोलिक पहचान तक सीमित नहीं रहा है। यह गांव न केवल अंग्रेजी शासन, बल्कि आजादी के बाद से शिक्षा, प्रशासन और राजनीति के क्षेत्र में अपनी गहरी छाप छोड़ता आया है। सरयू नदी के किनारे बसे इस गांव ने कई ऐसे महान व्यक्तित्व वाले इंसान दिए, जिन्होंने अपने-अपने मार्ग चुनकर समाज की सेवा को जीवन में सर्वोपरी रखा। इन्हीं में से दो शख्स ऐसे भी थे, जिन्होने आगे बढ़कर इस परंपरा में एक नई मिसाल कायम की। इनमें से एक थे पूर्व सांसद राजकुमार राय और दूसरे डॉ. जयप्रकाश राय। दोनों एक ही शहर एक ही गांव और एक ही कुनबे से आते थे। एक ने समाजसेवा के लिए राजनीति चुना तो एक ने चिकित्सा। एक ने अपने क्षेत्र के विकास के लिए देश के सबसे बड़े लोकतंत्र के मन्दिर संसद में आम लोगों की आवाज बुलंद की तो एक ने सेवा में रहते हुए रोजगार से लेकर स्वास्थ्य और हर मुश्किल परिस्थितियों में अपने क्षेत्र के लोगो की मदद की। उस दौर में दोनों ने कई ऐसे काम किये जो आने वाली पीढ़ियों के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं।

मऊ जो मुख्तार अंसारी गैंग के लिए भी जाना जाता है, कभी शबाना आजमी के पिता और मशहूर रचनाकार कैफे आजमी के शहर आजमगढ़ का हिस्सा था। एक समय विकास पुरुष कल्पनाथ राय की वजह से मऊ दिल्ली की सियासत में भी अपनी एक अलग धाक रखता था। वहीं जिले के सरयू नदी के किनारे बसे एक बड़ी आबादी वाले गांव सूरजपुर की उच्च सरकारी नौकरियों और काशी नरेश का गांव होने के नाते एक अलग ही पहचान रही है। बता दें कि इस जिले की एक मात्र लोकसभा सीट घोसी है। वही घोसी जहां उनसे पहले झारखंडे राय इस सीट पर काबिज थे। और वही लोकसभा जो राजकुमार राय के लिए उनकी जन्म और कर्म भूमि दोनों ही थी। इस सीट से वह 1984 से 1989 तक सांसद रहे।

साल 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के तुरंत बाद हुए लोकसभा के इस चुनाव में राजकुमार राय भारी बहुमत से विजयी हुए। तब इसी चुनाव में पास की सीट बलिया से पूर्व पीएम चंद्रशेखर की हार हुई थी। इससे पहले वे 1980 से 1985 तक उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य भी रहे। शिक्षा के सबसे बड़े केंद्र काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) से एम.ए. और एल.एल.बी. की पढ़ाई के दौरान छात्र जीवन से ही राजकुमार राय राजनीति में जुड़ गए। राजकुमार राय जमीन से जुड़े नेता थे। सांसद रहते हुए उन्होंने न सिर्फ़ अपने क्षेत्र की जन समस्याओं को लोकसभा में जोरदार तरीके से उठाया, बल्कि कई महत्वपूर्ण विधेयकों पर बहस में भी हिस्सा लिया। उनकी राजनीति ज़मीन से जुड़ी हुई थी। सहज, सरल और आम जन के लिए हर घड़ी उनकी सुलभता ने जन मानस पर ऐसी छाप छोड़ी जो आज भी कायम है। सांसद रहने के दौरान जनता की आवाज़ संसद तक ले जाना और उसके समाधान के लिए प्रयास करना ही उनका मुख्य उद्देश्य रहा। संसद में रहते हुए वे Public Accounts Committee के सदस्य रहे। बाद में उन्हें उत्तर प्रदेश में “बीज प्रमाणीकरण निगम” का अध्यक्ष भी बनाया गया।
दूसरी तरफ डॉ. जयप्रकाश राय ने छात्र जीवन से ही मेधा का परिचय दिया। वाराणसी के क्विन्स कॉलेज से शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने उच्च अध्ययन किया और प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में सफलता पाई। यूपीएससी और यूपीपीएससी दोनों में चयनित होकर वे चिकित्सा सेवाओं से जुड़े। वहीं उच्च शिक्षा के बाद यूपीपीएससी से चयन होने के बाद शांहजहापुर में उन्हें पहली पोस्टिंग मिली। हालांकि, इससे पहले यूपीएससी क्लियर करने के बाद वे करीब 6 महीने कर्नाटक के सीएम की चिकित्सा टीम का हिस्सा भी रह चुके थे। सरकारी सेवा के दौरान उनके प्रयासों से क्षेत्र के तमाम लोगों को सरकारी और निजी सेवाओं में रोजगार मिला। जहां भी रहे गरीबों के लिए काम करते रहे। उस दौर के लोगों के पास आज भी उनसे जुड़ी ऐसे किस्से कहानियां हैं, जो आप की आंखें नम कर देंगी। उनके मिलनसार, व्यवहारकुशल, भावनाप्रधान ओर दिन के 24 घंटे सेवा के लिए उनकी उपलब्धता ने उन्हें काफी लोकप्रिय बनाया। गांव और समाज में उनकी प्रतिष्ठा और उससे जुड़े उदाहरण तब देखने लायक हुआ करते थे।
डॉ. जयप्रकाश राय और राजकुमार राय दोनों एक ही गांव, एक ही कुनबे और एक ही सांस्कृतिक परंपरा से निकले। फर्क सिर्फ़ इतना था कि डॉ. राय ने जन सेवा के लिए चिकित्सा का रास्ता चुना तो राजकुमार राय ने राजनीति और संसद का। लेकिन उद्देश्य दोनों का समान था। यह कहानी सिर्फ़ दो व्यक्तियों की नहीं, बल्कि सूरजपुर गांव और मऊ ज़िले की उस जीवंत परंपरा की है, जिसने बार-बार यह दिखाया है कि यहां से निकलने वाले लोग देश और समाज सेवा को सर्वोपरि मानते हैं। दोनों के जाने के साथ ही एक ऐसे दौर का अंत हुआ जहां जन सेवा निस्वार्थ थी, जो बड़े पदों पर आसीन होने के बाद भी आम जन में आसानी से घुल मिल जाते थे। जो स्वयं से पहले दूसरों के बारे में सोचा करते थे। मुझे नहीं पता कि वर्तमान में या आने वाली पीढ़ियों में कोई इन जैसा भी निकलेगा या नहीं, क्योंकि भले ही कुछ कार्यों में समानता हो सकती है, लेकिन इन जैसा होना वो भी आज के दौर में नामुमकिन है। मुझे इस बात का हमेशा से गर्व रहा है कि मैं भी उसी कुटुंब की एक शाखा हूं। संयोग देखिये आज 24 सितंबर को दोनों की ही पुण्यतिथि है।
- रोहित राय
